गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

बचपन



चंचल, बोधरहित, मनभावन, सहज, सरल, मन ऊपवन
स्वतः प्रेम जागृत कर जाये, कितना प्यारा बचपन

रंच मात्र का लोभ नहीं, ना राग - द्वेष की बातें
मस्ती का वह जीवन बीता, बाकी केवल यादें

वो क्षण भर,मन का रूठना, अगले पल ही धूम मचाना
जटिल बड़ा लगता अब सबकुछ, वो सामर्थ्य नहीं, पहचाना

वो भूल कोई कर, डर, माँ के आँचल छिप जाना
कितना साहस भर जाता था, वो स्नेह शरण का पाना

बचपन की वो हंसी ठिठोली, ख्वाबो की मुक्त उडानें
आज बंधा सा लगता जीवन, बचपन क्या, अब जानें

काश यदि होता संभव, वक़्त को, उल्टे पैर चलाना
जग जीवन से, राहत कितना, देता बचपन का आना

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

प्रेम ईश्वर है …


ना आदि, ना अंत , इंद्रियो से परे जिसका स्तर है,
प्रेम, बड़ा अनमोल, प्रेम, शाक्षात ईश्वर है

प्रेम आत्मा के धरातल पर उफनता, भावों का असीम सागर है,
प्रेम अभाष्य, अदृश्य, आलोकिक ज्योति, कण-कण में जिसका घर है

प्रेम श्रृष्टि के उत्पत्ति की वजह, श्रृष्टि के पालन का आधार है,
प्रेम भावः को अलग करो गर, देखो, फिर मरघट यह संसार है

प्रेम आत्मा को, आत्मा से, परमात्मा से, जोड़ने का एकमात्र मार्ग है,
प्रेम बहुआयामी, बहुमूल्य है, यह है जहाँ, होता वही पर स्वर्ग है