सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

वो छली


वो छली,
है द्वेष जिसका अस्त्र है,
वो गहन मावस मे भी मदमस्त है,
चेतना की निंद टूटे क्यूँ भला ?
वो हकों की लूट मे हीं व्यस्त है।

वो निशा दृष्टा,
आभ दिखला के क्या ?
वो दिवस मे,
जन्म से हीं सूर है।
झकझोरने का श्रम वृथा हीं जाएगा,
वो ठूँठ है,
फलहीन है,
मगरूर है।

कब लोलुपित सिंह को,
कोई  मेमना समझा सका ?
कब बिना संग्राम के,
कोई कौरवों को झुका सका ?

जिन्दगी संघर्ष है,
संघर्ष कर,
विनती, विनय को त्याग,
अब तू अस्त्र धर।
हार या के जीत में,
तुम एक हो,
युद्ध या के प्रीत में,
तुम नेक हो।

साक्षी है इतिहास,
समर अपरिहार्य है,
जब न्याय हीं हो दांव पर,
स्वीकार्य है।

सोमवार, 15 अप्रैल 2019

माया



माया
दुनियाँ को
नचायाँ है।

भरम है योग,
वियोग भरम,
जग भरम का
साया है।

माया ------।

जो आया है,
जाएगा एक दिन,
अटल जगत की
रवानी।
मोह का रोग
तबहू नही छूटे,
पल-पल तड़पाया है।

 माया --------।

स्नेह का बन्धन,
सृजन किया धन,
कुछ भी चिर न रहेगा ।
तापर रे मन,
कहाँ तू उलझा,
किस डोर बंधाया है।

माया ----------।

ना गन्तव्य,
ना राह है निश्चित,
बढ़े कहाँ तू जाता ।
थम कर,
सुलझा ले,
जो अब तक,
तूने उलझाया है।

 माया
दुनियाँ को
नचायाँ है।