मंगलवार, 12 मार्च 2024

धैर्य धर।


 

घोर मावस सा अंधेरा,
किरण पथ राहू ने घेरा,
विकट उबरन, कठिन हर क्षण,
विश्वास को प्रज्वलित कर,
तू धैर्य धर।

हर अंत से

शुरूआत का है पथ निकलता,
ठोकर लगे से कब रूका,
चैतन्य जो, फिर-फिर सम्भलता,
संघर्ष पर ही फलित होता दिव्य फर,
तू धैर्य धर।

है कौन वैसी रात
,
जिसपर दिवस का जय रहा वंचित ?
कर्म का है विधान यह,
सत् कर्म गर, परिणाम निश्चित,
अडिग मन, बढ़ता चरण, उठता निखर,
तू धैर्य धर।

बीज
तत्क्षण ही नही वटबृक्ष बनता,
अपनी गति से हीं 
समय हर दृश्य जनता,
नियत पल मे, कर्म फलता है प्रखर,
तू धैर्य धर।


सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

वो छली


वो छली,
है द्वेष जिसका अस्त्र है,
वो गहन मावस मे भी मदमस्त है,
चेतना की निंद टूटे क्यूँ भला ?
वो हकों की लूट मे हीं व्यस्त है।

वो निशा दृष्टा,
आभ दिखला के क्या ?
वो दिवस मे,
जन्म से हीं सूर है।
झकझोरने का श्रम वृथा हीं जाएगा,
वो ठूँठ है,
फलहीन है,
मगरूर है।

कब लोलुपित सिंह को,
कोई  मेमना समझा सका ?
कब बिना संग्राम के,
कोई कौरवों को झुका सका ?

जिन्दगी संघर्ष है,
संघर्ष कर,
विनती, विनय को त्याग,
अब तू अस्त्र धर।
हार या के जीत में,
तुम एक हो,
युद्ध या के प्रीत में,
तुम नेक हो।

साक्षी है इतिहास,
समर अपरिहार्य है,
जब न्याय हीं हो दांव पर,
स्वीकार्य है।

सोमवार, 15 अप्रैल 2019

माया



माया
दुनियाँ को
नचायाँ है।

भरम है योग,
वियोग भरम,
जग भरम का
साया है।

माया ------।

जो आया है,
जाएगा एक दिन,
अटल जगत की
रवानी।
मोह का रोग
तबहू नही छूटे,
पल-पल तड़पाया है।

 माया --------।

स्नेह का बन्धन,
सृजन किया धन,
कुछ भी चिर न रहेगा ।
तापर रे मन,
कहाँ तू उलझा,
किस डोर बंधाया है।

माया ----------।

ना गन्तव्य,
ना राह है निश्चित,
बढ़े कहाँ तू जाता ।
थम कर,
सुलझा ले,
जो अब तक,
तूने उलझाया है।

 माया
दुनियाँ को
नचायाँ है।

बुधवार, 12 सितंबर 2018

इच्छित नहीं सही



हों जैसे वैसे दिखें,
चुनें, गुणें अनुराग,
कानन को सुख देत हैं,
भ्रमित न हो तू जाग |

हों प्रकृत अनुरूप ही,
यह है पशु का भाग,
नर के ही सामर्थ्य है,
आत्म चयन, निज राग |

सोच, ख़ालिस अनुराग ही,
नहीं स्वयं में पूर्ण,
सही-गलत के भेद से,
मुक्त चेतना चूर्ण |

सो दिखना,
जो हो उचित,
द्वय अंतर और बाह,
पथिक,
हटो भटकाव से,
चुनों सही जो
राह |

दोस्ती कर ले |



दोस्ती कर ले,
तू अपनी जान से,
मुक्त कर खुद को,
वृथा अभिमान से |

पीढ़ियों की दूरियों
को पाट तू,
काट एकल दृष्टि,
सम्यक् ज्ञान से |

गत का रोना छोड़,
नव में घ्यान दे,
कुछ सीखा, कुछ सीख,
थोडा मान दे |

काल की तू चाल
को पहचान ले,
हार में भी जीत,
ऐसा मान ले |

अपनी दुआओं में,
तू उनको जोड़ ले,
उनकी ख़ुशी, तेरी है,
चित को मोड़ ले |

स्वप्न में उनके
तू अपने कर फना,
उड़ान उनके,
पर तू अपने जोड़ दे |
 
अपमान के तू घूँट
से बच जायेगा,
अंश से तू,
मित्र सा सुख पायेगा |

निश्चिंत होकर,
इस धरा से जायेगा,
मिटकर भी स्वय को,
चित में उनके पायेगा |

रविवार, 29 जुलाई 2018

नारद राम संवाद

तुलसी कृत रामायण के अरण्य कांड में समाहित नारद-राम संवाद से इनदिनों रूबरू होने का मौका मिला जिसके पार्श्व में एक बहु परिचित कथा है जिसमे विवाहोन्मुख नारद को बन्दर की सूरत देकर भगवान विष्णु उनके विवाह में बाधा डाल देते है जिसके फलस्वरूप नारद भगवान विष्णु को क्रोध में आकर उन्हें  नारी विरह में तडपने का श्राप दे देते है और राम को उसी श्राप को अंगीकार कर सीता विरह मे वन-वन भटकना पडता है | पढ़कर आनंद आया तो सोचा कुछ उनके शब्दों में अपने शब्दों का घालमेल कर यहाँ प्रस्तुत करूँ, इस निवेदन के साथ की महिला पाठकगण कविता में जहाँ-जहाँ नारी या उसका प्रयायवाची शब्द आया है वहाँ उसे माया का स्वरूप मान कर (जो उनके केस मे नर हो सकता है) कविता का आनंद लें | मर्यादा पुरुषोतम राम के प्रति मन मैला न करें 😊😊

देखि
विरह व्याकुल अति
स्वयं विरागी राम,
मुनि श्रेष्ठ
सोचन लगे
मम श्राप
लियो सुखधाम |

ऐसे
प्रभु दरस
को जाऊ,
पुनः न अवसर
ऐसो पाऊ |

मुनि
राम धुन
गावत आयो,
चरण परे,
प्रभु
ह्रदय लगायो |

कुशलछेम
विविध
करी बाता,
सहज जानी
पूछेउ रघुनाथा |

नाथ
प्रश्न एक
मम हिय माहि,
धन्य होऊ
यदि हल
होई जाही |

काल एक
माया
प्रभु तोरी,
वरण नारी
हिय
आयेसु मोरी |

चाहउ
नाथ
गवाऊ न
मौका,
मोहि कहहू
केही कारण
रोका ?

हर्षित राम
कहहि
एही बाता,
हिय-पट
खोली सुनहु
मुनि-ताता,

शरण
जे मोहि,
तजि अन्य
भरोसा,
मात भाती
हरहु तिन्ह
दोषा |

मातु
स्नेह
शिशु-पुत्र
घनेरी,
प्रौढ़ होय
जे बात
न फेरी |

तिमी
शिशु-पुत्र
मम
भक्त अमानी,
प्रोढ़ सो जो
समझाहि
निज ज्ञानी |

काम, क्रोध
दोउ को
रिपु जानू,
शिशु पुत्र
रक्षक
मोहि मानू |

एही
सब जानी
ज्ञानी
मोहि भजहि,
प्रवीण होय
भक्ति
नहीं तजहि|

काम, क्रोध
मद लोभ सब,
मोह
के सृजनहार,
तामह
अति दुखदायनी
मायारूपी
नार |

सुनु मुनि
साक्ष्य
पुराण, श्रुति
संता,
मोह उपवन
तो
नारी बसंता |

जप, तप
नेम
जलाश्रय जानो,
सोष सो
लेही
त्रिय-ग्रीष्म
सो मानो |

पाप
उलुकगण
सुखद खरारी,
ऐसो
गहन निशा
सम नारी |

ज्ञानी
कहहि
बनसी सम
नारी
बुद्धि, बल
सील
जो मत्स्य
बेचारी |

अवगुण मूल
है कष्टप्रद,
विविध
दुखों की
खान,
तुम्ही बचावन
हेतु मुनि
बन्यो
प्रणय व्यवधान |😊

सुनी
प्रभु के
वचन अस,
मुनि
हिय भयो
संतोष,
ऐसो
करुणावान
पर
काको नहीं
भरोस | 😊

सोमवार, 24 मार्च 2014

घर-घर मोदी, स्वर-स्वर मोदी



घर-घर मोदी,
स्वर-स्वर मोदी,
 देव भूमि से
गूंज रहा,
चहुँदिश नमो,
निरंतर मोदी ।
 
जन उदघोष,
है रण की बेला,
मारक अस्त्र,
व्युह का रेला,

प्रखर शत्रु,
प्रखरतर मोदी
|
 
घर-घर मोदी......   

जीर्ण विरासत का
अधिकारी,
भर्मित मति सा
एक मदारी,

और बचे कुछ,
निकृष्ट खिलाडी,
गर वे भूमि,
शिखर है मोदी । 

घर-घर मोदी.......  

केंद्रित दृष्टि,
वेगमय रथ है,
अविचल बुद्धि,
सुनिश्चित पथ है,
विजयोन्मुख,
है बेहतर मोदी |

घर-घर मोदी.....