शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

साथ मेरा



साथ मेरा,
जब है हमदम,
फिर साँझ - सवेरा क्या है ?
पग की बाधाएँ,
हैं क्या फिर ?
दुर्दांत अँधेरा क्या है ?

तुमने,
निज हाथ दिया मुझको,
हर पल का साथ दिया मुझको,
दुःख - सुख तेरे,
अब मेरे हैं,
तुमने कृतार्थ किया मुझको |

एक सफ़र के,
हम हमसफ़र बने,
अब धुप मिले या छाँव घने,
पग,
जहा पड़े मेरे राहों में,
तेरे, संग-पदचिन्हों की छाप बने |

होकर निःशंक,
तुम साथ चलो,
दे हाथों में तुम हाथ चलो,
मिल,
दुर्गम रस्ते साधें हम,
हर बाधाओं के पार चलो |