रविवार, 6 फ़रवरी 2011

व्यक्त-अव्यक्त



हे पार्थ,
जीव
अव्यक्त है
जन्मपूर्व,
वह
व्यक्त
जन्म से
होता है
और
पुनः अव्यक्त
निधनौपरांत,
वह नित्य चक्र
में होता है,
हों
शोकाकुल,
उस
हेतु जीव के,
औचित्य
कहाँ
फिर
होता है ?

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अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना॥२- २८॥

(श्रीमद्भगवद्गीता)