रविवार, 4 मार्च 2012

आनंद



जीवन पर्यंत,
जन्मों-जन्मों की,
खोज भिन्न
एक सार,
आनंद स्वरुप
अंश जग सारा,
आनंद
जगत आधार |

हास्य-रुदन,
निद्रा-जगन,
कुछ पाने
कुछ खोने में,
सूक्षम दृष्टि
यदि डालें तो,
आनंद छुपा
हर होने में |

आनंद !
मूलतः दो विभाग,
एक पाय
घटे,
एक बढ़ता है,
एक
जन्म-मरण
पथ का दायी,
एक
मुक्ति श्रोत
श्रुति कहता है |

आनंद
जगत का
क्षणिक है,
क्षय मुक्त
नहीं परिमाण,
सच्चिदानंद
तो एक हैं,
वो सर्वेश्वर,
भगवान |