शनिवार, 26 नवंबर 2011

पश्चिम या पूरब ?

पश्चिम,
पूरब की
खीच तान,
रच रहें
द्वन्द,
विचलित है
प्राण |

बाहर
भागूँ,
अन्दर
जागूँ,
है विकट प्रश्न,
मुश्किल
निदान |

कभी
मूल्य को
रखकर
कोने में,
सुख पाऊ
जग का
होने में,
घुटते
अन्तर से
व्यथित हुआ,
कभी
समय बिताऊ
रोने में |

सोचूं
बीते से
बंधा हुआ
मै आज
कहाँ उठ
पाउँगा ?
कल तजा
यदि,
उठ गया भी
जो,
अन्तर को
रौंद
न जाऊंगा ?

कभी,
उन्मुक्त
जीविका
सीखा रही,
पश्चिम की
हवा
सुहाती है,
कभी
सद्चरित्र,
सुगठित रहन,
पुरखो की
मन को
भाती है |


पश्चिम,
पूरब की
खीच तान,
रच रहें
द्वन्द,
विचलित है
प्राण |

बाहर
भागूँ,
अन्दर
जागूँ,
है विकट प्रश्न,
मुश्किल
निदान |