हर पल जीवन दूर सरकता, खूब श्रृष्टि का क्रम है |
क्या खोना, क्या पाना, हार - जीत, सब भ्रम है ||
आपाधापी में जीवन की, नर दूर निकाल जाता है |
अंतकाल, था चला, स्वयं को, खड़ा वही पाता है ||
बन इच्छाओ का दास मनुज, जग में मारा फिरता है |
एक हों पूरी,वह फिर-फिर, सौ इच्छाओ से घिरता है ||
क्षणिक ज्ञान,यश,धन,बल पा, नर व्यर्थ ही, इतराता है |
मिट्टी का तन, नश्वर जीवन, मिटना है, मिट जाता है ||
मृगतृष्णा है जग का सुकून, कब मिलता ?, कब खोता है ?|
माया के, हों वशीभूत मनुज, क्षण हँसता, क्षण रोता है ||
kya baat hai... bahut sacchi aur sundar shabdo main dhali RAchna...
जवाब देंहटाएंSanti Ji,
जवाब देंहटाएंहर पल जीवन दूर सरकता, खूब श्रृष्टि का क्रम है |
क्या खोना, क्या पाना, हार - जीत, सब भ्रम है ||
आपाधापी में जीवन की, नर दूर निकाल जाता है |
अंतकाल, था चला, स्वयं को, खड़ा वही पाता है ||
बन इच्छाओ का दास मनुज, जग में मारा फिरता है |
एक हों पूरी,वह फिर-फिर, सौ इच्छाओ से घिरता है ||
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yeh khyaal mujhe behad pasand aayen hain. Jaisa ki maine aapko ek doosri jagah kaha hai ki apki kavitaayen padhna mere liye ek sukhad anubhav hota hai. Bahut achha likha hai aapne
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Gaurav
क्षणिक ज्ञान,यश,धन,बल पा, नर व्यर्थ ही, इतराता है |
जवाब देंहटाएंमिट्टी का तन, नश्वर जीवन, मिटना है, मिट जाता है ||
bilkul sahi......gahan bhawnaaon ka saakar roop
aap to bahut badhiya likhte bhai.....chupe rustam nikle hmmmmmmmmmmmmm
जवाब देंहटाएंहर पल जीवन दूर सरकता, खूब श्रृष्टि का क्रम है |
जवाब देंहटाएंक्या खोना, क्या पाना, हार - जीत, सब भ्रम है ||
waah ....!!
Manushya zivan ko prerit karti sunder rachna ....!!
मृगतृष्णा है जग का सुकून, कब मिलता ?, कब खोता है ?|
जवाब देंहटाएंमाया के, हों वशीभूत मनुज, क्षण हँसता, क्षण रोता है ||
sach hai
sundar