मंगलवार, 19 जुलाई 2011

नदिया प्रीत निभाना जाने |



प्रेम तपिश से
बने तरल,
बढ़ चले,
कठिन
या राह सरल,
थके नहीं,
ना थमे कहीं,
वो सागर से
मिल जाना जाने,
नदिया,
प्रीत निभाना जाने |

वो पली
भले हों,
गिरि शिखर,
झुक चले हमेशा
प्रेम डगर,
सर्वस्व समर्पण हेतु
वो निज का,
उन्नत शीश,
झुकाना जाने,
नदिया,
प्रीत निभाना जाने |

हो
बहे गाँव
या कोई शहर,
दूषित तत्व
लय आठों पहर,
अविरल बहकर,
निर्मल रहकर,
वो अपना धर्म
बचाना जाने,
नदिया,
प्रीत निभाना जाने |

थलचर,
नभचर
या हो जलचर,
कोई भेद न
करती वो उनपर,
वह नेह की
व्यापक सोच लिए,
हर शय को
तृप्ति दिलाना जाने,
नदिया,
प्रीत निभाना जाने |

5 टिप्‍पणियां:

  1. वह नेह की
    व्यापक सोच लिए,
    हर शय को
    तृप्ति दिलाना जाने,
    नदिया,
    प्रीत निभाना जाने |
    बहुत बढि़या ।

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  2. कोमल अहसासों से परिपूर्ण एक बहुत ही भावभीनी रचना जो मन को गहराई तक छू गयी ! बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  3. Dr.Sushila Gupta ने कहा…
    वो पली
    भले हों,
    गिरि शिखर,
    झुक चले हमेशा
    प्रेम डगर,
    सर्वस्व समर्पण हेतु
    वो निज का,
    उन्नत शीश,
    झुकाना जाने,
    नदिया,
    प्रीत निभाना जाने |

    ek preranarthak prastuti

    aapka abhar.

    जवाब देंहटाएं
  4. वो पली
    भले हों,
    गिरि शिखर,
    झुक चले हमेशा
    प्रेम डगर,
    सर्वस्व समर्पण हेतु
    वो निज का,
    उन्नत शीश,
    झुकाना जाने,
    नदिया,
    प्रीत निभाना जाने |
    bahut umda , prastuti .aabhar

    जवाब देंहटाएं
  5. वो सागर से
    मिल जाना जाने,
    नदिया,
    प्रीत निभाना जाने |very nice.

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