मिट न सकी वो काली छाया
तन आजाद है, हो गया माना,
तन आजाद है, हो गया माना,
मन आजाद तो हो नहीं पाया |
अंग्रेजो के कोप से पीड़ित,
अंग्रेजो के कोप से पीड़ित,
जनता ने जब शोर मचाया,
गली-गली में, घर-घर में,
गली-गली में, घर-घर में,
जब लोगों ने लहू तिलक लगाया |
नर शव से जब जमीं पट गयी,
नर शव से जब जमीं पट गयी,
पर वलिदान न कम हो पाया,
तब जाकर, भारत का गौरव,
तब जाकर, भारत का गौरव,
तीन रंग का धवज फहराया |
सदियों से पिंजरे का बंदी,
सदियों से पिंजरे का बंदी,
पंक्षी ने तब पर फैलाया,
उड़ जाने की नील गगन में,
उड़ जाने की नील गगन में,
सोचा, पर वो उड़ ना पाया |
क्योंकि वह था, भूख से पीड़ित,
क्योंकि वह था, भूख से पीड़ित,
दलित, कहाँ वह जाता ?
किस-किस के आगे,
किस-किस के आगे,
वह अपनी, करुण कथा दुहराता ?
पेट की ज्वाला, कष्ट की राहें,
पेट की ज्वाला, कष्ट की राहें,
देख के वह घबराया,
मन का कादर, पिंजरे की,
मन का कादर, पिंजरे की,
सुविधा को भूल न पाया |
उसने सोचा, पिंजरे में था,
मगर पास में रोटी थी,
बंधकर रहना पड़ता था,
बंधकर रहना पड़ता था,
पर कष्ट भी छोटी मोटी थी |
एक मत्स्य हो दुषित अगर,
एक मत्स्य हो दुषित अगर,
तालाव दुषित हो जाता है,
गलत सोच भी कभी-कभी,
गलत सोच भी कभी-कभी,
खासा महंगा पड़ जाता है |
आज भी हम, उस गलत सोच को,
आज भी हम, उस गलत सोच को,
दूर नहीं कर पाए हैं,
हिले नहीं, हैं खड़े वहीं,
हिले नहीं, हैं खड़े वहीं,
पिंजरे की ताक लगाये हैं |
हमें सोच के अन्धकार में,
हमें सोच के अन्धकार में,
दीप ज्योति का लाना है,
तन की मुक्ति की भाति ही,
तन की मुक्ति की भाति ही,
मन को भी मुक्त बनाना है |
हमें मार्ग से भटक चुके,
हमें मार्ग से भटक चुके,
राही को राह पे लाना है,
आजादी का अर्थ सही,
आजादी का अर्थ सही,
क्या है, उनको बतलाना है |
आजादी.....
जवाब देंहटाएंसच है कहने के साथ मन की बेबसी नज़र है आती,
हमें सोच के अन्धकार में, दीप ज्योति का लाना है
तन की मुक्ति की भाति ही, मन को भी मुक्त बनाना है......सच है ये आह्वान.....तभी होगा स्वतंत्रता का असली मान .......बहुत अच्छा लिखते हैं
Bahut hi prasangik rachna hai...
जवाब देंहटाएंकैसा दुखद परिवेश हैं अपना.....कि आजाद होकर भी
जवाब देंहटाएंकुंठित हैं......बहुत सही विषय उठाया.....लोगों तक ये दर्द पहुंचे-यही कामना और आशीष हैं