द्वेष बढ़ रहा,
फ़ैल रहा है अत्याचार,
मानव रुधिर की हर एक अणु,
मानव रुधिर की हर एक अणु,
बैठ चूका है भ्रष्टाचार |
आदर्शो का साम्राज्य मिट गया,
आदर्शो का साम्राज्य मिट गया,
न्याय की मूर्ति टूट गई,
यूँ लगता है, तम से हार के,
यूँ लगता है, तम से हार के,
रौशनी जग से रूठ गई |
अधिकार की परिभाषा को लेकर,
अधिकार की परिभाषा को लेकर,
होड़ मची है जन-जन में,
छल, अभिमान और स्वर्थपर्ता,
छल, अभिमान और स्वर्थपर्ता,
समा चुकी है तन-तन में |
धन के बल से हाथ मिला कर,
धन के बल से हाथ मिला कर,
न्याय है देती गुठने टेक,
बेकसूर चढ़ते शूली पर,
अपराधी फिरते बन नेक |
भ्रष्टाचार है जलप्रपात,
भ्रष्टाचार है जलप्रपात,
ऊपर से नीचे बढ़ता है,
नीचे वालों की क्या बिसात,
नीचे वालों की क्या बिसात,
अंकुश यदि ऊपर रहता है |
कर्णधार हो भ्रष्ट यदि,
जनता को रोके कौन भला ?
एक टीस ह्रदय में उठती है,
एक टीस ह्रदय में उठती है,
किस गर्त में है ये समाज चला |
कर्णधार हो भ्रष्ट यदि, जनता को रोके कौन भला
जवाब देंहटाएं.....
सही प्रश्न उठाया है,
और बहुत अच्छा लिखा है........