है रौशनी लायी सवेरा,
जाती जहा तक दृष्टि है,
जाती जहा तक दृष्टि है,
आदित्य का ही है बसेरा |
छट चुके काले अँधेरे,
छट चुके काले अँधेरे,
मिट चुकी हर मुश्किले हैं,
खुल गयी मंजिल की राहें
खुल गयी मंजिल की राहें
गम क्या अगर कुछ फासले हैं |
जग गयी सोयी तम्मना,
जग गयी सोयी तम्मना,
नींद अब पूरी हुई है,
भाग्य की मिटती लकीरें,
भाग्य की मिटती लकीरें,
फिर से अब बनने लगी है |
उत्साह है मन में उठा,
उत्साह है मन में उठा,
परवाह शुलो की नहीं है,
जीत होगी हीं हमारी,
जीत होगी हीं हमारी,
बस कुछ पलों की वेबसी है |
फिर मिली खोयी वो ताकत,
फिर मिली खोयी वो ताकत,
फिर वही सम्मान पाया
धन्य है वो विश्व नायक,
धन्य है वो विश्व नायक,
धन्य है नियति की माया |
जग गए हम,
जग गए हम,
फिर न सो जाएँ,
सजग हमको है रहना,
बीत जाये ना दिवस,
बीत जाये ना दिवस,
फिर अब पड़े तम को न सहना |
है अब हमें पुरजोर से,
है अब हमें पुरजोर से,
उत्थान की करनी तैयारी,
पानी है हर वो चोटी,
पानी है हर वो चोटी,
है जिससे जुडी मंजिल हमारी |
"शब्दों को तोड़ मरोड़ के ये कैसा रिश्ता बनाया,
जवाब देंहटाएंनिर्जीव इन शब्दों में, जीवन का हिस्सा पाया" !!!!!
बहुत स्पष्ट सोंच है आपकी .
काफी उत्साहवर्द्धक रचना है,
जवाब देंहटाएंनए सवेरे की,जागृति भरी जिजीविषा की अद्वितिये तस्वीर ........
बहुत अच्छी...