शनिवार, 26 जुलाई 2008

प्रेम समर्पण खोजता है |

धन की चाहत 
हो यदि, 
खुशियों का 
अर्पण खोजता है,
तन की चाहत 
हो यदि, 
विषयों भरा 
मन खोजता है,
गर हो चाहत 
प्रेम की, 
वह भी मिलेगा 
इस जहाँ में,
बस एक निर्मल 
और निश्चल, 
मन का 
समर्पण खोजता है |

प्रेम जीता जा 
सका कब, 
रणक्षेत्र में 
कौशल दिखा कर ?
प्रेम जीता जा 
सका कब, 
छल से भरी 
चौसर बिछाकर ?
गर जीतना है 
प्रेम को, 
वह जीत पाओगे 
जहाँ में
मद से भरा 
बस एक ह्रदय का, 
हार जाना खोजता है |

प्रेम देखा जा सका कब, 
मस्जिदों, देवालयों में ?
प्रेम देखा जा सका कब, 
गिरिजाघरों, शिवालयों में ?
गर देखना है 
प्रेम को, 
वह देख पाओगे 
जहाँ में
बस नेह्प्लवित 
दो नयन में, 
डूब जाना खोजता है |

प्रेममय गर हो, 
जहां को जो बनाना,
नेह सुमन दिल में, 
खिलाना खोजता है,
मद, लोभ, ईर्ष्या, 
द्वेष की गठरी धरा से,
कही दूर, 
दरिया में बहाना खोजता है |

9 टिप्‍पणियां:

  1. शर्मा जी बहुत सुन्दर रचना है।
    प्रेम देखा जा सका कब, मस्जिदों, देवालयों में ?
    प्रेम देखा जा सका कब, गिरिजाघरों, शिवालयों में ?
    गर देखना है प्रेम को, वह देख पाओगे जहाँ में
    बस नेह्प्लवित दो नयन में, डूब जाना खोजता है

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  2. प्रेम जैसे पावन रिश्ते को आपने बिलकुल सही और ठीक ढंग से प्रस्तुत क्या है असली मायने में हम प्रेम को देख ही नहीं पाते समझ ही नहीं जबकि वो हमारे ही अन्दर हमारे ही पास होता है किसी ना किसी रूप में और किसी पर विश्वास नहीं कर पाते यहाँ तक कि इश्वर पर भी नहीं जब विश्वास ही नहीं तो समर्पण कि बात ही नहीं आती बस यहीं कमी रहे जाती है प्यार है तब भी उससे अछूते रहे जाते है क्यूँकि प्यार समर्पण मांगता है विश्वास मांगता है जिसमें हम असमर्थ रहेते हैं और खुद ही दुखी होते हैं आपने बिल्कुल सही बताया है अपनी इस रचना में कि प्रेम समर्पण खोजता है .... अच्छी प्रस्तुति है शुभकामनाये ..

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  3. bahut sunder sandesh deti hui kavita
    jo jaisa dhoondh raa hota hai waisa hi khojta hai
    aur prem to khojna padhta hi nahi

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  4. प्रेम एक सुकोमल एहसास है,
    इसे सिर्फ समर्पण ही दे सकता है,
    छल,कौशल,पैसे,या भय से इसे जगाया तक नहीं जा सकता,
    बहुत सही और बहुत सुन्दर.......

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  5. बिना समर्पण के प्यार का कोई रूप-रंग नहीं,बहुत गहराई से आकलन किया है
    मेरा आशीर्वाद है,
    इसी तरह सुरुचिपूर्ण भाव उतारते रहो.

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  6. bahut khubsurat rachna.....S.Kumar jee!
    ..mere paas shabd nahi ban pa rahe hain, iske bakhan ke liye.....!!

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