बुधवार, 14 जनवरी 2009

पूर्णता


श्रृष्टि का हर कण ही होता, निज में है आधा-अधुरा
नेह वश जब आ मिले, हो पूर्णता का ख्वाब पूरा

रात्रि आधी, दिवस आधा, सोचो, है एक दूजे की बाधा
पूर्णता हेतु ही देखो, क्रमबद्धता में निज को बांधा

सम्पूर्णता निज में बने, यह होड़ अब चहु ओर है
क्या इस पनपती सोच का, कोई है धरा, कोई छोर है ?

क्या आज की यह सोच, अब शाश्वत नियम झुठ्लाएगी ?
या सामंजय्स से हीन हो, श्रृष्टि बिखर अब जायेगी ?

4 टिप्‍पणियां:

  1. सम्पूर्णता निज में बने, यह होड़ अब चहु ओर है
    क्या इस पनपती सोच का, कोई है धरा, कोई छोर है ?
    ...sach aaj ka parivesh prashn bankar rah gaya hai,bahut hi vicharniye bhawon ko sabke samaksh rakha hai - ise hi kalam ki taakat kahte hain

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  2. श्रृष्टि का हर कण ही होता, निज में है आधा-अधुरा
    नेह वश जब आ मिले, हो पूर्णता का ख्वाब पूरा

    acchi lagi aapki paktiyan......

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  3. सम्पूर्णता निज में बने, यह होड़ अब चहु ओर है
    क्या इस पनपती सोच का, कोई है धरा, कोई छोर है ?


    -बहुत सुन्दर!! वाह!

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  4. सम्पूर्णता निज में बने, यह होड़ अब चहु ओर है
    क्या इस पनपती सोच का, कोई है धरा, कोई छोर है ?

    nahi kahi nahi milti ab sampurnta halaki koshish sabki hi hai
    bhaut sunder bhaav bahut achha kathaksh

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