बुधवार, 23 दिसंबर 2009

कुछ सपने



नियति प्रधान,
जग जीवन के,
कुछ हिस्से,
कब पूरे हों पाते है ?
कुछ सपने,
अधूरे रह जाते है |

स्वप्न देखा,
अवधपति ने,
ज्येष्ठ सुत राजा बने,
प्रारब्ध के आगे,
मनुज सुख-स्वप्न,
कब जाते गणे ?
सुत चला वनवास,
वियोग,
क्षण प्राण हर जाते है,
कुछ सपने ..... |

स्वप्न देखा,
नवबधु सिया ने,
गृहस्थी सुखकारी बने,
भावी बनी दीवार,
मिली हर राह,
वह घेरी खड़े,
प्रथम मिला बनवास,
हरण,
कुछ ले गया विश्वास,
प्रिय-कर त्याग,
बचा सब कुछ बहा जाते है,
कुछ सपने ..... |

7 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ सपने,
    अधूरे रह जाते है
    achchhi rachana hai
    sundar


    kishor

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  2. sapne ! haath se kis tarah ret ki tarah fisal jate hain, bahut utkrisht udaahranon se bataya.......bahut hi utkrisht rachna

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  3. सुन्दर रचना कुमार जी, बहुत अच्छी और हृदयस्पर्शी रचना है आपकी!

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  4. सुन्दर रचना कुमार जी, बहुत अच्छी और हृदयस्पर्शी रचना है आपकी!

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  5. bilkul sach kuch sapne hamesha hi adhure rahte hain aur unki tees zinda rahti hai

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  6. नियति प्रधान,
    जग जीवन के,
    कुछ हिस्से,
    कब पूरे हों पाते है ?

    सार गर्भित पंक्तियाँ लिखी आपने
    समय बड़ा बलवान

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