मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

रिश्तों के रखाव में : गुरु के प्रति समर्पण



रिश्तों के
रखाव में
सहजता का
आभाव क्यु ?

तत्क्षण
दे दी थी
गुरु दक्षिणा
अंगूठे की
एकलव्य ने
द्रोण को |

न सोचा,
बस
रख दिया
अपना
जीवन संचय
कदमो
में उनके,
जिनसे
न कुछ
जाना था,
जो गुरु थे
नहीं,
जिन्हें
बस गुरु
माना था |

पर आज इन
रिश्तों में
श्रद्धा,
समर्पण का
प्रतिक्षण होता
गिराव क्यों ?

रिश्तों के
रखाव में
सहजता का
आभाव क्यु ?

(नायेदा जी की काव्य श्रंखला से प्रभावित)

1 टिप्पणी:

  1. अंगूठा न देता तो तीर कैसे चला पाता
    खुद बदनाम होता गुरु का नाम डुबाता

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