मंगलवार, 12 मार्च 2024

धैर्य धर।


 

घोर मावस सा अंधेरा,
किरण पथ राहू ने घेरा,
विकट उबरन, कठिन हर क्षण,
विश्वास को प्रज्वलित कर,
तू धैर्य धर।

हर अंत से

शुरूआत का है पथ निकलता,
ठोकर लगे से कब रूका,
चैतन्य जो, फिर-फिर सम्भलता,
संघर्ष पर ही फलित होता दिव्य फर,
तू धैर्य धर।

है कौन वैसी रात
,
जिसपर दिवस का जय रहा वंचित ?
कर्म का है विधान यह,
सत् कर्म गर, परिणाम निश्चित,
अडिग मन, बढ़ता चरण, उठता निखर,
तू धैर्य धर।

बीज
तत्क्षण ही नही वटबृक्ष बनता,
अपनी गति से हीं 
समय हर दृश्य जनता,
नियत पल मे, कर्म फलता है प्रखर,
तू धैर्य धर।


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