गुरुवार, 17 जनवरी 2008

जीवन



जैसे यह तन 
हम जीवों का, 
पंचतत्व का मिश्रण है,
वैसे हीं सुख-दुःख का मिलना, 
हीं मानव का जीवन है |

सुख में खोना, 
दुःख में रोना, 
ये विवेक का काम नहीं,
असफल होकर थम जाना, 
जीवन का ये तो विराम नहीं |

सोना अग्नि में तपकर हीं, 
कुन्दन के रूप को पाता है
काँटों पर चलते-चलते हीं, 
एक सुखमय मंजिल आता है |

काँटों की चुभन से, 
विचलित हो, 
जो अपनी राह बदलते है
वे सदैव मंजिल की 
उलटी ही राहों पर चलते है |

जो असहनीय 
कष्टों को सहकर, 
भी आगे को बढते है
वे आज नहीं तो कल ही सही, 
हर दुर्गम चोटी चढ़ते है |

जिसने इस मर्म को 
जान लिया, 
जीवन रहस्य पहचान लिया,
जिंदादिली ही जीवन है, 
इस गूढ़ सत्य को मान लिया |

1 टिप्पणी:

  1. जीवन के गूढ़ तथ्यों को काफी सलीके से रखा है,
    इन्हें संजोना ही जीवन को पाना है.......

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