रविवार, 20 अप्रैल 2008

विश्वास न खोने देना |



हो थकान भरी 
जीवन की डगर, 
तुम आस न सोने देना
बरसेंगे ख़ुशी के मेघ, 
ये तुम विश्वास न खोने देना |

जितना पतझड़ है सत्य, 
वसंत की 
उतनी ही सच्चाई है,
दो दिवस के 
मध्य में हीं हरदम, 
कोई रात घनी आयी है
कब दिल की अगन, 
रोके है पवन, 
तुम चाह ना बुझने देना,
है ताकत तो 
झुकता है गगन, 
तुम बाह ना झुकने देना |

सतयुग हो या हो कलयुग, 
है सत्य दिखा परेशां,
सहमा, विचला राहों में, 
थी सफर न उसकी आसां,
पर जीता है वो हरदम, 
तुम हार न होने देना,
मंजिल है तुम्हारी निश्चित, 
बस राह न खोने देना |

मन हार न माने जब तक, 
है आस विजय की तब तक,
जब प्रेम प्रबल हो जाता, 
कब रोके कौन विधाता ?

सौ आस जो टूटे दिल के, 
फिर स्वप्न संजोने देना,
हाँ ख्वाब है होते पूरे, 
ये विश्वास न खोने देना |

6 टिप्‍पणियां:

  1. जितना पतझड़ है सत्य, वसंत भी उतनी ही सच्चाई है,
    .........इस एक पंक्ति के माध्यम से तुमने विश्वास का
    मार्ग प्रशस्त किया है,
    तुम्हारी लेखन क्षमता अद्भुत है....

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  2. "जितना पतझड़ है सत्य, वसंत भी उतनी ही सच्चाई है,
    दो दिवस के मध्य में ही हरदम, एक रात घनी आयी है"

    बेहतरीन आशावादी रचना है..

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  3. मन हार न माने जब तक, है आश विजय की तब तक,
    जब प्रेम प्रबल हो जाता, तब रोके कौन विधाता
    सौ आश जो टूटे दिल के, फिर स्वप्न संजोने देना,
    हां ख्वाब है होते पूरे, ये विश्वास न खोने देना

    bahut sundar likha hai ..

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  4. विश्‍वास न खोने देना
    बहुत सुन्‍दर रचना है

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  5. जितना पतझड़ है सत्य, वसंत भी उतनी ही सच्चाई है,
    ....
    bilkul sahi kaha aap ne....
    vishwas hi to jeevan dor hai...jo har pal humey sambhale rahti hai...

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  6. बेहद खूबसूरत आशावादी कविता है आपकी...जीवन में आशावादी होना एक बहुत अच्छा गुण है. इश्वर आपके इस विश्वास को बनाये रखे...

    नीलिमा

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