उम्मीद
पथिक
राह पर
चले,
अथक,
मंजिल की
चाह
जरुरी है |
ठोकर खा
जीवन
संभल सके,
उम्मीद
की
बाँह
जरुरी है ||
दुःख-सुख
जीवन के
चिर-स्तम्भ,
क्रमबार
इन्हें
तो
आना है |
सृजन,
नाश
फिर सृजन,
प्रकृत का
निश्चित
स्वांग
पुराना है ||
ज्यू,
गहन
निशा के,
अन्धकार को,
दिवस
दिवाकर
खाता है |
त्यु जटिल
निराशा
मिटती है,
उर जब,
आशा के
दीप
जलाता है |
जग निर्माता
का
अटल
कर्म,
हर पल
उम्मीद
जगाता है |
एक बुझे,
कई
रौशन
हों,
कुछ यूँ,
जग को
जगमाता है | |
वाह! बहुत उम्दा!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर शब्द ।
जवाब देंहटाएंbeautiful!
जवाब देंहटाएंbahut achchi likhi.
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