सोमवार, 6 सितंबर 2010

आत्मविश्वास



जो,
खोज पाते,
निज में ही,
गहरा,
अटल विश्वास

कब,
ढूंढ़ते फिरते,
कहाँ,
जग में,
वे क्षुद्र प्रकाश ?

चलते,
कहाँ,
कब देखकर,
परनिर्मित,
पदचिन्हों की
रेख ?

बढ़ते
सहज,
उस ओर,
जिधर,
मंजिल,
वे पाते
देख |

जहां
की बेड़ियाँ,
उनके कदम,
कब रोक
पाती है ?

प्रवल
विश्वास के
आगे
मुश्किलें
हार जाती है |

विषय,
होता
नहीं गंभीर,
के
जग बोले,
क्या सोचे है ?

बात जो
अर्थ
रखती है
के
स्वयं,
निज को
क्या सोचे है |

जो खुद,
निज के
प्रति
मन, कर्म,
वचन
से न्याय
करता है |

सफल
जीवन बने,
उसका
शुरू
अध्याय
करता है |

6 टिप्‍पणियां:

  1. जो खुद,
    निज के
    प्रति
    मन, कर्म,
    वचन
    से न्याय
    करता है |

    सफल
    जीवन बने,
    उसका
    शुरू
    अध्याय
    करता है |
    बहुत ही सुन्‍दर भावमय प्रस्‍तुति ।

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  2. सही कहा है ... अपने पर विशवास हो तो हर रास्ता आसान हो जाता है ... अपनी राह खुद बन जाती है ... अच्छी रचना है बहुत .....

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  3. बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है

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  4. आत्मविश्वास ही सब कुछ है

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