दोस्ती कर ले,
तू अपनी जान से,
मुक्त कर खुद को,
वृथा अभिमान से |
पीढ़ियों की दूरियों
को पाट तू,
काट एकल दृष्टि,
सम्यक् ज्ञान से |
गत का रोना छोड़,
नव में घ्यान दे,
कुछ सीखा, कुछ सीख,
थोडा मान दे |
काल की तू चाल
को पहचान ले,
हार में भी जीत,
ऐसा मान ले |
अपनी दुआओं में,
तू उनको जोड़ ले,
उनकी ख़ुशी, तेरी है,
चित को मोड़ ले |
स्वप्न में उनके
तू अपने कर फना,
उड़ान उनके,
पर तू अपने जोड़ दे |
अपमान के तू घूँट
से बच जायेगा,
अंश से तू,
मित्र सा सुख पायेगा |
निश्चिंत होकर,
इस धरा से जायेगा,
मिटकर भी स्वय को,
चित में उनके पायेगा |
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