माया
दुनियाँ को
नचायाँ है।
भरम है योग,
वियोग भरम,
जग भरम का
साया है।
माया ------।
जो आया है,
जाएगा एक दिन,
अटल जगत की
रवानी।
मोह का रोग
तबहू नही छूटे,
पल-पल तड़पाया है।
माया --------।
स्नेह का बन्धन,
सृजन किया धन,
कुछ भी चिर न रहेगा ।
तापर रे मन,
कहाँ तू उलझा,
किस डोर बंधाया है।
माया ----------।
ना गन्तव्य,
ना राह है निश्चित,
बढ़े कहाँ तू जाता ।
थम कर,
सुलझा ले,
जो अब तक,
तूने उलझाया है।
माया
दुनियाँ को
नचायाँ है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें