सोमवार, 15 अप्रैल 2019

माया



माया
दुनियाँ को
नचायाँ है।

भरम है योग,
वियोग भरम,
जग भरम का
साया है।

माया ------।

जो आया है,
जाएगा एक दिन,
अटल जगत की
रवानी।
मोह का रोग
तबहू नही छूटे,
पल-पल तड़पाया है।

 माया --------।

स्नेह का बन्धन,
सृजन किया धन,
कुछ भी चिर न रहेगा ।
तापर रे मन,
कहाँ तू उलझा,
किस डोर बंधाया है।

माया ----------।

ना गन्तव्य,
ना राह है निश्चित,
बढ़े कहाँ तू जाता ।
थम कर,
सुलझा ले,
जो अब तक,
तूने उलझाया है।

 माया
दुनियाँ को
नचायाँ है।

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