मरणासन्न,
किसी व्यक्ति की,
आँखों से देखो,
और सोचो,
जीवन,
ये कैसा व्यापार है ?
ध्वनि, 
कई प्रतिध्वनियो में, 
गूंजेगी तुम्हारे कानो में
जीवन असार है, 
जीवन
असार है |
ये स्वप्नों के पीछे, 
दौड़ती जिंदगी,
सुख-दुःख के धुप-छाव से, 
जूझती जिंदगी,
बचपन, 
जवानी, 
बुढापे में हरपल, 
कुछ खोजती जिंदगी,
यूँ ही रीत जाती है, 
उमरिया बीत जाती है |
अब जाने की है तैयारी, 
टूटी भ्रम की झूठी खुमारी,
क्या खोया, क्या पाया, 
आकलन बड़ा पेचीदा है |
यू तो है
एश्वर्य कदमो में, 
तुने युग को जीता है,
पर क्या जा पायेगा साथ तेरे ?
ये संसार मिथ्या है, 
ये एश्वर्य झूठा है |
अब जाना, 
जो जा सकता था, 
उसे तो तुने संजोया ही नहीं,
अपने में खोया रहा, 
दुखियों के दर्द पर, 
तू कभी रोया ही नहीं |
तू हरपल लोभ, 
ईर्ष्या, 
अंहकार के बीज, 
जीवन के गर्भ में बोता रहा,
अपनी हर जीत पर, 
खुश होता रहा, 
पर हर पल, 
खुद को खोता रहा |
काश, 
जो ये आँखे, 
पहले मिली होती,
तो आज, 
तन्हाई में भी, 
एक अलग ख़ुशी होती |
हरपल भीड़ में, 
गुजारी थी जिंदगी मैंने,
आज इस तन्हा सफर में, 
कुछ तो रौशनी होती |
 
