रिश्तों के
रखाव में
सहजता का
आभाव क्यु ?
तत्क्षण
दे दी थी
गुरु दक्षिणा
अंगूठे की
एकलव्य ने
द्रोण को |
न सोचा,
बस
रख दिया
अपना
जीवन संचय
कदमो
में उनके,
जिनसे
न कुछ
जाना था,
जो गुरु थे
नहीं,
जिन्हें
बस गुरु
माना था |
पर आज इन
रिश्तों में
श्रद्धा,
समर्पण का
प्रतिक्षण होता
गिराव क्यों ?
रिश्तों के
रखाव में
सहजता का
आभाव क्यु ?
(नायेदा जी की काव्य श्रंखला से प्रभावित)