न जाने कहाँ ले जायेगी ?
सोचता हूँ,
सोचता हूँ,
तो डर जाता हूँ,
ये संस्कृति, सिद्धांत और आदर्शो की विरासत,
ये संस्कृति, सिद्धांत और आदर्शो की विरासत,
अब कब तक टिक पायेगी ?
ये आधुनिकता की अंधी दौड़,
ये आधुनिकता की अंधी दौड़,
न जाने कहाँ ले जायेगी ?
अब ग्रहस्थी के दोनों स्तंभ,
अब ग्रहस्थी के दोनों स्तंभ,
सुख के संसाधन जुटाते हैं,
चार हाथों से अर्थ बटोर,
चार हाथों से अर्थ बटोर,
वे फुले ना समाते हैं,
कोई शक नहीं जो ये पीढ़ी,
कोई शक नहीं जो ये पीढ़ी,
जरुरत से कुछ जयादा जुटा लाएगी,
पर क्या भावना, लगाव और शांति की अनमोल निधि,
पर क्या भावना, लगाव और शांति की अनमोल निधि,
अक्षुण रख पायेगी ?
ये आधुनिकता की अंधी दौड़,
ये आधुनिकता की अंधी दौड़,
न जाने कहाँ ले जायेगी ?
वो नारी जिसे करूणा, दया और प्रेम की
वो नारी जिसे करूणा, दया और प्रेम की
प्रतिमूर्ति कहा जाता था,
जिनके त्याग और मातृत्व की ताकत के आगे,
जिनके त्याग और मातृत्व की ताकत के आगे,
नर खुद को झुका पाता था,
आधुनिकता के इस दौर में उसने,
आधुनिकता के इस दौर में उसने,
खुद को किस हद तक नीचे ला डाला है,
फिर भी दंभ देखो,
फिर भी दंभ देखो,
कहती है खुद को किस खूबी से संभाला है,
ये झूठे दिखावे और बनावटी प्रतिस्प्रधा ही होड़ में,
क्या कुछ ना कर जाएँगी,
ये झूठे दिखावे और बनावटी प्रतिस्प्रधा ही होड़ में,
क्या कुछ ना कर जाएँगी,
और तनिक ना शर्मायेंगी,
पर जो प्रकृति है उनका और कर्तव्य भी,
पर जो प्रकृति है उनका और कर्तव्य भी,
उसे करते खुद को पिछडा पाएँगी |
ये आधुनिकता की अंधी दौड़,
न जाने कहा ले जायेगी ?
सोचता हूँ , तो कॉप जाता हूँ,
ये मातृत्व, त्याग और प्रेम की मिसाल,
सोचता हूँ , तो कॉप जाता हूँ,
ये मातृत्व, त्याग और प्रेम की मिसाल,
क्या अब खोजने से भी मिल पायेगी ?