शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

साथ मेरा



साथ मेरा,
जब है हमदम,
फिर साँझ - सवेरा क्या है ?
पग की बाधाएँ,
हैं क्या फिर ?
दुर्दांत अँधेरा क्या है ?

तुमने,
निज हाथ दिया मुझको,
हर पल का साथ दिया मुझको,
दुःख - सुख तेरे,
अब मेरे हैं,
तुमने कृतार्थ किया मुझको |

एक सफ़र के,
हम हमसफ़र बने,
अब धुप मिले या छाँव घने,
पग,
जहा पड़े मेरे राहों में,
तेरे, संग-पदचिन्हों की छाप बने |

होकर निःशंक,
तुम साथ चलो,
दे हाथों में तुम हाथ चलो,
मिल,
दुर्गम रस्ते साधें हम,
हर बाधाओं के पार चलो |

रविवार, 25 अप्रैल 2010

बेपरवाह शहंशाह



जो आत्मतत्व को 
जान गए,
कब भव सागर में 
खोते है ?
परवाह न जग की
करते है,
बेपरवाह 
शहंशाह होते है |

जग,
जग के
पीछे भाग रहा,
वो निज में,
ध्यान लगाते है,
जग,
जीत-जीत कर
हार रहा,
वो,
हार के
जीते जाते है |

जग ने,
देखे सम्राट घणै,
जो समय चक्र से,
धूल बने,
ये बने,
तो फिर,
ना मिट पाए,
ख़म ठोक,
हिमपति तुल्य जमे |

बेपरवाह,
जहां से,
भले दिखें,
परवाह,
उसी की करते है,
जग,
निज में खोया रहता है,
वो जग में,
खोये रहते है |