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ज्यू
अनेक नदियों
का जल,
उस अचल प्रतिष्ठावान
जलधि,
परिपूर्ण जलाजल
से मिलकर,
नहीं करते
उसको तनिक विचल,
त्यू ही
सर्वकामना
जगत की
स्वतः मिले,
न पर
जो बुद्धि भटकती,
है वही
परम शांति
अधिकारी,
न वो
हों जो
कामना पुजारी |
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भावानुवाद गीता श्लोक संख्या ७०
आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं-
समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत् ।
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे
स शान्तिमाप्नोति न कामकामी ॥