अपने बच्चों में बाटता है,
जो जैसा बोता है,
जो जैसा बोता है,
वैसा ही काटता है |
देखो प्रकृति
देखो प्रकृति
खेल कैसे खेलती है,
बीज जब तक कंटको का,
बीज जब तक कंटको का,
बन जाये ना वृक्ष,
पालती है,
पालती है,
पोसती,
सब झेलती है |
बोने वाले का
बोने वाले का
अहम् भी फूलता है,
वो लगा आसन,
वो लगा आसन,
तले उस वृक्ष के
नैन मूंदे मद-हिडोले
नैन मूंदे मद-हिडोले
झूलता है |
सोचता है
सोचता है
अब लगेंगे फल रसीले,
कंटको में कब लगेंगे
कंटको में कब लगेंगे
फल रसीले ?
हाथ आता है तो बस,
हाथ आता है तो बस,
झाड़ें कटीले |
अब वह करुण क्रंदन से
अब वह करुण क्रंदन से
नभ को भेदता है,
प्रश्न-शर से,
प्रश्न-शर से,
ईश ऊर को छेदता है,
दर्द ऐसा क्यों दिया,
दर्द ऐसा क्यों दिया,
कुछ बोल अब तो,
तू कहा बैठा है,
तू कहा बैठा है,
गुत्थी खोल अब तो |
ईश बोले,
ईश बोले,
हूँ न दोषी मैं किसी का,
कुछ बो सके,
कुछ बो सके,
यह वक़्त आता है सभी का,
इस धरा पर
इस धरा पर
कर्म का ही चक्र चलता
जैसा जो बोता,
जैसा जो बोता,
ठीक वैसा ही है फलता |
आज तुझको जो मिला,
आज तुझको जो मिला,
तेरे कर्मो का फल है,
कांटे थे बोए,
कांटे थे बोए,
फिर चुभन से क्यों विकल है,
कर्म पीछा छोड़ता है
कर्म पीछा छोड़ता है
कब किसी का ?
वक़्त करता न्याय,
वक़्त करता न्याय,
एक दिन है सभी का |