सोमवार, 14 जुलाई 2008

जो जैसा बोता है …..

ईश्वर कब सुख-दुःख, 
अपने बच्चों में बाटता है,
जो जैसा बोता है, 
वैसा ही काटता है |

देखो प्रकृति 
खेल कैसे खेलती है,
बीज जब तक कंटको का, 
बन जाये ना वृक्ष,
पालती है, 
पोसती, 
सब झेलती है |

बोने वाले का 
अहम् भी फूलता है,
वो लगा आसन, 
तले उस वृक्ष के
नैन मूंदे मद-हिडोले 
झूलता है |

सोचता है 
अब लगेंगे फल रसीले,
कंटको में कब लगेंगे 
फल रसीले ?
हाथ आता है तो बस, 
झाड़ें कटीले |

अब वह करुण क्रंदन से 
नभ को भेदता है,
प्रश्न-शर से, 
ईश ऊर को छेदता है,
दर्द ऐसा क्यों दिया, 
कुछ बोल अब तो,
तू कहा बैठा है, 
गुत्थी खोल अब तो |

ईश बोले, 
हूँ न दोषी मैं किसी का,
कुछ बो सके, 
यह वक़्त आता है सभी का,
इस धरा पर 
कर्म का ही चक्र चलता
जैसा जो बोता, 
ठीक वैसा ही है फलता |

आज तुझको जो मिला, 
तेरे कर्मो का फल है,
कांटे थे बोए, 
फिर चुभन से क्यों विकल है,
कर्म पीछा छोड़ता है 
कब किसी का ?
वक़्त करता न्याय, 
एक दिन है सभी का |