जो,
खोज पाते,
निज में ही,
गहरा,
अटल विश्वास
कब,
ढूंढ़ते फिरते,
कहाँ,
जग में,
वे क्षुद्र प्रकाश ?
चलते,
कहाँ,
कब देखकर,
परनिर्मित,
पदचिन्हों की
रेख ?
बढ़ते
सहज,
उस ओर,
जिधर,
मंजिल,
वे पाते
देख |
जहां
की बेड़ियाँ,
उनके कदम,
कब रोक
पाती है ?
प्रवल
विश्वास के
आगे
मुश्किलें
हार जाती है |
विषय,
होता
नहीं गंभीर,
के
जग बोले,
क्या सोचे है ?
बात जो
अर्थ
रखती है
के
स्वयं,
निज को
क्या सोचे है |
जो खुद,
निज के
प्रति
मन, कर्म,
वचन
से न्याय
करता है |
सफल
जीवन बने,
उसका
शुरू
अध्याय
करता है |