बुधवार, 16 जून 2010
रिश्तों के रखाव में: प्रेम के रिश्ते को समर्पित
रिश्तों के
रखाव में
सहजता का
अभाव क्यों ?
अगाध
प्रेम था
राधा-कृष्ण
में,
सांसारिक
बन्धनों
से परे |
नैसर्गिक
प्रेम
बलवती
होता
गया,
हर क्षण,
लेकिन
अबधित
रही
उनकी
सांसारिक
कर्तव्यों
के प्रति
निष्ठा |
परन्तु
आज
इस रास्ते पर,
परिलक्षित
होता
भटकाव क्यों ?
रिश्तों के
रखाव में
सहजता का
अभाव क्यों ?
(नायेदा जी की काव्य श्रंखला से प्रभावित)
गुरुवार, 3 जून 2010
रिश्तों के रखाव में : पति-पत्नी के रिश्ते को समर्पित
रिश्तों के
रखाव में
सहजता का
अभाव क्यों ?
अटूट
रहा
एक - दूजे
के प्रति
राम-सीता
का
प्रेम,
विश्वास,
समर्पण |
वक़्त की
आंधियाँ
हारती
गयी,
निखारती
गयी,
उनके
चिर-स्थाई
व्यवहार
को,
वनवास,
हरण,
त्याग
की
कसौटियों
पर
कस - कस
कर,
परन्तु
आज
इन रिश्तों में,
अल्प मुद्दों
पर ही,
उमड़ पड़ता
बिखराव क्यों ?
रिश्तों के
रखाव में
सहजता का
अभाव क्यों ?
(नायेदा जी की काव्य श्रंखला से प्रभावित)
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