हों जैसे
वैसे दिखें,
चुनें, गुणें
अनुराग,
कानन को
सुख देत हैं,
भ्रमित न हो
तू जाग |
हों प्रकृत
अनुरूप ही,
यह है
पशु का भाग,
नर के
ही सामर्थ्य है,
आत्म चयन,
निज राग |
सोच,
खलिस अनुराग ही,
नहीं स्वयं में
पूर्ण,
सही-गलत
के भेद से,
मुक्त चेतना,
चूर्ण |
सो दिखना,
जो हो उचित,
द्वय अंतर और बाह,
पथिक,
हटो भटकाव से,
चुनों सही जो
राह |
दोस्ती कर ले,
तू अपनी जान से,
मुक्त कर खुद को,
वृथा अभिमान से |
पीढ़ियों की दूरियों
को पाट तू,
काट एकल दृष्टि,
सम्यक् ज्ञान से |
गत का रोना छोड़,
नव में घ्यान दे,
कुछ सीखा, कुछ सीख,
थोडा मान दे |
काल की तू चाल
को पहचान ले,
हार में भी जीत,
ऐसा मान ले |
अपनी दुआओं में,
तू उनको जोड़ ले,
उनकी ख़ुशी, तेरी है,
चित को मोड़ ले |
स्वप्न में उनके
तू अपने कर फना,
उड़ान उनके,
पर तू अपने जोड़ दे
|
अपमान के तू घूँट
से बच जायेगा,
अंश से तू,
मित्र सा सुख पायेगा |
निश्चिंत होकर,
इस धरा से जायेगा,
मिटकर भी स्वय को,
चित में उनके पायेगा |