बुधवार, 12 सितंबर 2018

इच्छित नहीं सही



हों जैसे वैसे दिखें,
चुनें, गुणें अनुराग,
कानन को सुख देत हैं,
भ्रमित न हो तू जाग |

हों प्रकृत अनुरूप ही,
यह है पशु का भाग,
नर के ही सामर्थ्य है,
आत्म चयन, निज राग |

सोच, ख़ालिस अनुराग ही,
नहीं स्वयं में पूर्ण,
सही-गलत के भेद से,
मुक्त चेतना चूर्ण |

सो दिखना,
जो हो उचित,
द्वय अंतर और बाह,
पथिक,
हटो भटकाव से,
चुनों सही जो
राह |

दोस्ती कर ले |



दोस्ती कर ले,
तू अपनी जान से,
मुक्त कर खुद को,
वृथा अभिमान से |

पीढ़ियों की दूरियों
को पाट तू,
काट एकल दृष्टि,
सम्यक् ज्ञान से |

गत का रोना छोड़,
नव में घ्यान दे,
कुछ सीखा, कुछ सीख,
थोडा मान दे |

काल की तू चाल
को पहचान ले,
हार में भी जीत,
ऐसा मान ले |

अपनी दुआओं में,
तू उनको जोड़ ले,
उनकी ख़ुशी, तेरी है,
चित को मोड़ ले |

स्वप्न में उनके
तू अपने कर फना,
उड़ान उनके,
पर तू अपने जोड़ दे |
 
अपमान के तू घूँट
से बच जायेगा,
अंश से तू,
मित्र सा सुख पायेगा |

निश्चिंत होकर,
इस धरा से जायेगा,
मिटकर भी स्वय को,
चित में उनके पायेगा |