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चंचल, बोधरहित, मनभावन, सहज, सरल, मन ऊपवन
स्वतः प्रेम जागृत कर जाये, कितना प्यारा बचपन
रंच मात्र का लोभ नहीं, ना राग - द्वेष की बातें
मस्ती का वह जीवन बीता, बाकी केवल यादें
वो क्षण भर,मन का रूठना, अगले पल ही धूम मचाना
जटिल बड़ा लगता अब सबकुछ, वो सामर्थ्य नहीं, पहचाना
वो भूल कोई कर, डर, माँ के आँचल छिप जाना
कितना साहस भर जाता था, वो स्नेह शरण का पाना
बचपन की वो हंसी ठिठोली, ख्वाबो की मुक्त उडानें
आज बंधा सा लगता जीवन, बचपन क्या, अब जानें
काश यदि होता संभव, वक़्त को, उल्टे पैर चलाना
जग जीवन से, राहत कितना, देता बचपन का आना