गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

बचपन



चंचल, बोधरहित, मनभावन, 
सहज, सरल, मन ऊपवन,
स्वतः प्रेम जागृत कर जाये, 
कितना प्यारा बचपन |

रंच मात्र का लोभ नहीं, 
ना राग-द्वेष की बातें,
मस्ती का वह जीवन बीता, 
बाकी केवल यादें |

वो क्षण भर, मन का रूठना, 
अगले पल ही धूम मचाना,
जटिल बड़ा लगता अब सबकुछ, 
वो सामर्थ्य नहीं, पहचाना |

वो भूल कोई कर, डर, 
माँ के आँचल छिप जाना,
कितना साहस भर जाता था, 
वो स्नेह शरण का पाना |

बचपन की वो हंसी ठिठोली, 
ख्वाबों की मुक्त उडानें,
आज बंधा सा लगता जीवन, 
बचपन क्या, अब जानें |

काश यदि होता संभव, 
वक़्त को, उल्टे पैर चलाना,
जग जीवन से, राहत कितना, 
देता बचपन का आना |