शुक्रवार, 1 नवंबर 2024

स्वाभिमान



हीन भाव से ग्रसित जीव, 
उत्थान नहीं कर पाता है,
हर लक्ष्य असंभव दिखता है, 
जब स्वाभिमान मर जाता है |

स्वाभिमान है तेज पुंज, 
यदि कठिनाई है अन्धकार,
यह औषधि है उन रोगों की, 
विकल भाव जिनका विकार |

यह शक्ति है जो है पकड़ती, 
छुटते धीरज के तार,
यह दृष्टि है जो है दिखाती, 
नित नए मंजिल के द्वार |

यह आन है, यह शान है, 
यह ज्ञान है, भगवान है,
कुछ कर गुजरने की ज्योति है, 
हर चोटी का सोपान है |

हाँ सर उठाकर जिंदगी, 
जीना ही स्वाभिमान है,
गर मांग हो प्याले जहर, 
पीना ही स्वाभिमान है |

यह है तो इस ब्रह्माण्ड में, 
नर की अलग पहचान है,
जो यह नहीं, नर - नर नहीं, 
पशु है, मृतक समान है |

2 टिप्‍पणियां:

  1. सच है,स्वाभिमान के बिना जीवन का अर्थ नहीं,
    और जब ल्लाक्ष्य को पाना है....तो खुद को मृत नहीं बनाना है,
    खुद्दारी के साथ ज़ंग हो तो बात ही कुछ और होती है-यह सच है.......

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  2. गर पाना हैं लक्ष्य तो स्वाभिमान की बुनियाद ज़रूरी हैं......
    सही कहा और प्रभावशाली ढंग से कहा.....

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