![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgrbKgqpGYzo44iQA0i6PupSjy4evFFxefvEMfP6KvFi47BJER1gEuRS3WUQzxdW14RKOk6ltass3O1d7vrCMseW36FE-0oEZONh4sv0-OS5GvkjJL0mGG2acOuvW3zVoEUV7S36p3RkhY/s400/Virat_rupa_vishnu.jpg)
जीवन पर्यंत,
जन्मों-जन्मों की,
खोज भिन्न
एक सार,
आनंद स्वरुप
अंश जग सारा,
आनंद
जगत आधार |
हास्य-रुदन,
निद्रा-जगन,
कुछ पाने
कुछ खोने में,
सूक्षम दृष्टि
यदि डालें तो,
आनंद छुपा
हर होने में |
आनंद !
मूलतः दो विभाग,
एक पाय
घटे,
एक बढ़ता है,
एक
जन्म-मरण
पथ का दायी,
एक
मुक्ति श्रोत
श्रुति कहता है |
आनंद
जगत का
क्षणिक है,
क्षय मुक्त
नहीं परिमाण,
सच्चिदानंद
तो एक हैं,
वो सर्वेश्वर,
भगवान |
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