रविवार, 24 मार्च 2024

सोचता हूँ ॰॰॰॰

 


सोचता हूँ, कुछ लिखूँ, तेरी मदभरी आखों के नाम,
पर नशे में झूमने का भय, मेरे अन्तर में हैं।

सोचता हूँ, झाँक लूँ, तेरी रूह में, दृग द्वार से,
पर पाश में, तेरी रूह के, बंधने का भय अन्तर में हैं।

सोचता हूँ, गोते लगाऊँ, तेरी नयन-सागर तलहटी में,
पर नव सीखा मैं, डूबने का भय, मेरे अन्तर में हैं ।

सोचता हूँ, विश्राम कर लूँ, तेरी पलकों की गहरी छाँव में,
पर तेरी रुप आभा से मेरे, जलने का भय, अन्तर में हैं।

सोचता हूँ, घर बना लूँ, तेरी चक्षु के ब्रह्मांड में कहीं,
पर अखिल विस्तार में, खोने का भय, अन्तर में हैं।

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