शुक्रवार, 1 नवंबर 2024

स्वाभिमान



हीन भाव से ग्रसित जीव, 
उत्थान नहीं कर पाता है,
हर लक्ष्य असंभव दिखता है, 
जब स्वाभिमान मर जाता है |

स्वाभिमान है तेज पुंज, 
यदि कठिनाई है अन्धकार,
यह औषधि है उन रोगों की, 
विकल भाव जिनका विकार |

यह शक्ति है जो है पकड़ती, 
छुटते धीरज के तार,
यह दृष्टि है जो है दिखाती, 
नित नए मंजिल के द्वार |

यह आन है, यह शान है, 
यह ज्ञान है, भगवान है,
कुछ कर गुजरने की ज्योति है, 
हर चोटी का सोपान है |

हाँ सर उठाकर जिंदगी, 
जीना ही स्वाभिमान है,
गर मांग हो प्याले जहर, 
पीना ही स्वाभिमान है |

यह है तो इस ब्रह्माण्ड में, 
नर की अलग पहचान है,
जो यह नहीं, नर - नर नहीं, 
पशु है, मृतक समान है |

रविवार, 24 मार्च 2024

तुम सत्य हो या कोई माया हो !

 


मुखमंडल पर है तेज प्रबल,
मुस्कान सौम्य, शीतल, निश्छल,
नवयौवन का श्रृंगार लिए,
जीवन-रस पूर्ण सी काया हो,
तुम सत्य हो या कोई माया हो।

चित्तचोर नयन, मोहनी वसन,
आभा ऐसी, मानो मधुवन,
तरुणाई का मादक्य लिए,
रति की बिंबित सी छाया हो,
तुम सत्य हो या कोई माया हो।

सुमनों की संतति रस्क करें,
अधरों मे वो कोमलता है,
स्वर्णों की कांति लजा जाएं,
तेरा तन इस भाँति दमकता है,
चेतन को जड़ करने वाली,
लावण्य की एक सरमाया हो,
तुम सत्य हो या कोई माया हो।

जिस कूची से तुम गढ़ी गई,
जो भी हैं तुम्हारा सृजनहार,
साकार तुम्हे करने हेतु,
उनको है हमारा नमस्कार 😊

क्या इरादा तेरा ?


 

तू मेरी हो जा, तेरा रहूंगा सदा,
क्या इरादा तेरा ?

परस्तिश बहुत मैने बुतों की की,
वो दिखा ना कहीं, अब से पहले कभी,
तेरी सूरत में है, नूर उसका भरा,
क्या इरादा तेरा ?

तू मेरी हो जा......

दीद जीवन में की, मैने लाखों हसीं,
दिल न मजबूर था, अब से पहले कभी,
ध्यान हटता न, एक पल भी, तुझसे जरा,
क्या इरादा तेरा ?

तू मेरी हो जा.....

ख्वाब होते हैं सच, ये सुना था कहीं,
तुमसे मिलकर हुआ जाके अब ये यकीं,
तुझसे हीं होगा, संसार, मेरा हरा,
क्या इरादा तेरा?

तू मेरी हो जा, तेरा रहूंगा सदा,
क्या इरादा तेरा ?

अब ऊष्मा नही बाकी

 


अब ऊष्मा नही बाकी,
जीवन निःसार सा लगता है,
ढेला-कंकड़ भी पथ का, पहाड़ सा लगता है।

ना जीतने की जिद्द है,
ना हारने का गम है,
अब हर करम ही, थोथा व्यापार सा लगता है ।

पर चाहते है जिंदा,
है राख सुगबुगाती,
गर्माहटॊऺ पे अब भी, अधिकार सा लगता है।

इस आस को,
विश्वास में तब्दील कर जाना है,
जो जख्म है, कुछ पल में भर आना है ।
आलिंगन तो हो के रहेगा, गर प्रेम सच्चा है,
हर उलझनों के भव से, निश्चित हीं तर आना है।

डरते नही हैं हम ....


 

उतरें हैं समंदर में,
तो हौसला भी रखते है,
लहरों की आवाजाही से
डरते नहीं हैं हम।

शाहिल पे थमकर
बहुत दिन गुजारा,
सहारे की आदत
न छूटा किनारा,
बहुत सीप बीने
है मोती को पाना,
है गहरे समंदर में
गोते लगाना,
अब ठहरे के भ्रम में
पड़ते नही हैं हम,
लहरों की आवाजाही से
डरते नही हैं हम।

डूब जाऊ या उबरू
मिटूं या के निखरूं,
लहर में समाऊँ
या उसे चीर जाऊ,
नही कोई धारा
जो पग मेरा रोके,
डिगा ना सकेंगे
हवाओं के झोंके,
अब विपत्ति के भय से
खुद को भरते नही है हम,
लहरों की आवाजाही से
डरते नही हैं हम।

सोचता हूँ ॰॰॰॰

 


सोचता हूँ, कुछ लिखूँ, तेरी मदभरी आखों के नाम,
पर नशे में झूमने का भय, मेरे अन्तर में हैं।

सोचता हूँ, झाँक लूँ, तेरी रूह में, दृग द्वार से,
पर पाश में, तेरी रूह के, बंधने का भय अन्तर में हैं।

सोचता हूँ, गोते लगाऊँ, तेरी नयन-सागर तलहटी में,
पर नव सीखा मैं, डूबने का भय, मेरे अन्तर में हैं ।

सोचता हूँ, विश्राम कर लूँ, तेरी पलकों की गहरी छाँव में,
पर तेरी रुप आभा से मेरे, जलने का भय, अन्तर में हैं।

सोचता हूँ, घर बना लूँ, तेरी चक्षु के ब्रह्मांड में कहीं,
पर अखिल विस्तार में, खोने का भय, अन्तर में हैं।

सारा जीवन ही होली है।


 

त्योहार तो केवल है प्रतीक,
अगिनत रंगो की झोली है,
भेद, बिभेद से एकीकृत
सारा जीवन ही होली है।

यहाँ तो है उत्साह- निराशा,
हर्ष-विषाद घिरी प्रत्याशा,
प्रीति-अप्रीति, स्नेह-घॄणा संग,
बनती-मिटती ढ़ेरों अभिलाषा,
मित्र-शत्रु, अपने-पराए से,
सजी हुई रंगोली है,
भेद-बिभेद से एकीकृत
सारा जीवन ही होली है।

यहाँ खोज आनंद की है,
पर साथ वेदना चलती है,
यहाँ मिलन पोसे जाते,
संग-संग बिछड़न भी पलती है,
उँचा-नीचा, सम-विषम है पथ,
चलती लोगों की टोली है,
भेद, बिभेद से एकीकृत
सारा जीवन ही होली है।

जैसे सब रंग मिल करके,
मनभावन छवि बनाते है,
रंगने और रंगे जाने वाले,
दोनो सुख पाते है,
वैसे हीं दातार-जीव की,
यह अनुपम हमजोली है,
भेद, बिभेद से एकीकृत
सारा जीवन ही होली है।